September 13, 2012

From an unknown poet

ना सुकून ऐ दिल की है आरज़ू,
न किसी अज़ल की तलाश है। 
तेरी जुस्तजू में जो खो गयी,
मुझे उस नजर की तलाश है।

जिसे तू कहीं भी न पा सका,
मुझे अपने दिल में वो मिल गया .
तुझे जाहिब इसका मलाल क्या,
ये नज़र नज़र की तलाश है।  

तुझे दो जहाँ की ख़ुशी मिली 
मुझे दो जहाँ का आलम मिला 
वो तेरी नज़र की तलाश थी 
ये मेरी नज़र की तलाश है 

मेरी राहतों को मिटा के भी 
तेरे गम ने दी मुझे ज़िन्दगी 
तेरा गम नहीं यूँ ही मिल गया 
मेरी उम्र भर की तलाश है  

रहे नूर मेरी ये आरजू 
न रहे ये गर्दिश ऐ जुस्तजू 
जो फरेब ऐ जलवा न खा सके 
मुझे उस नजर की तलाश है 

September 07, 2012

Something i scribbled in office for Teacher's day:
....
....

Not by power of falsely might..
or by thrones, or swords of blood..
but by love and wisdom's insight..
breaking the dams on knowledge's flood..

I will carry you in ways unknown..
your love and stregnth in my humble pitcher..
to leave behind, long after
we're gone..
some of me and some of you, dear Teacher !