September 27, 2011

कभी कभी प्यार की चादर उतार फेंकू ऐसा सोचता हूँ |
सच और झूठ के बीच बैठा,
हर कदम पे चौराहे पाता,
आँखों पे इंतज़ार का पर्दा लटकाए,
विश्वास के घड़े को छलकते देखता |

मन में बैठे उस निश्चल लड़के की हर रोज़ उम्र कम होती है,
उसके इन्द्रधनुषी ख्वाबों में किसीकी स्याही घुल गयी,
उसके खिलखिलाती हंसी में खामोशियाँ घर कर गयीं,
उमंगो की टहनियों को सच्चाई की कड़वाहट काट गयी,
हँसता वो आज भी है, मगर 
हंसी जैसे किसी सोच में खोयी हो उसकी,
सपने वो आज भी देखता है, मगर 
अब रास्तों में वो बात नही|

जाने झूठ को क्यूँ दिल में पनाह देता हूँ,
जाने शब्दों को क्यूँ दिल में दबा लेता हूँ,

प्यार की लहरें इतनी अजीबोगरीब क्यूँ होती हैं ?
समंदर की लहरों को तो फिर भी किनारे नसीब होते हैं,
प्यार की समंदर के किनारे नहीं होते |



September 07, 2011

 हमने देखी है उन आँखों की मेहेकती खुशबू 
हाथ से छूके इसे रिश्तों का इल्जाम न दो |
सिर्फ एहसास है ये, रूह से महसूस करो 
प्यार को प्यार ही रहनो दो कोई नाम ना दो |

प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज़ नहीं 
एक खामोशी है सुनती है कहा कराती है 
ना ये बुझती है ना रुकती है ना ठहरी है कही
नूर की बूंद है सदियों  से बहा  करती है 

सिर्फ एहसास  है ये, रूह से महसूस करो 
प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम ना दो 

मुस्कराहट सी खिली रहती है आँखों में कही 
और पलको पे उजाले से छुपे रहते है
होठ कुछ कहते नहीं, कांपते होठो पे मगर  
कितने खामोश से अफसाने रुके रहते है

सिर्फ एहसास है ये, रूह से महसूस करो 
प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम ना दो 

हमने  देखी है ...

                                               गुलज़ार